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राजनीतिसंयुक्त राज्य अमेरिका

कॉलराडो में ट्रंप राष्ट्रपति पद के लिए अयोग्य घोषित

२० दिसम्बर २०२३

अमेरिका के कॉलराडो राज्य में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है. इस फैसले का अर्थ क्या है और अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर इसका क्या असर होगा?

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क्या फिर राष्ट्रपति बन पाएंगे डॉनल्ड ट्रंप
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंपतस्वीर: Andrea Renault/ZUMA/picture alliance

कॉलराडो सुप्रीम कोर्ट ने डॉनल्ड ट्रंप को व्हाइट हाउस के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है. इसका अर्थ है कि वह कॉलराडो में राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार नहीं हो सकते. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के प्राइमरी बैलट से उनका नाम हटा दिया है.

डॉनल्ड ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बनने के लिए चुनाव लड़ना चाहते हैं. रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से उम्मीदवारी के लिए वह नामांकन की दौड़ में सबसे आगे हैं. लेकिन संघीय सुप्रीम कोर्ट में भी उनके खिलाफ सुनवाई चल रही है और कॉलराडो के फैसले का संघीय अदालत के फैसले पर भी असर होने की संभावना है.

कॉलराडो सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, वह ऐतिहासिक है. ऐसा पहली बार हुआ है कि अमेरिकी संविधान में हुए 14वें संशोधन की धारा 3 के तहत किसी राष्ट्रपति उम्मीदवार को अयोग्य करार दिया गया है.

बगावत का मामला

सात जजों की बेंच में यह फैसला बंटा हुआ था. तीन जजों ने इस फैसले पर असहमति जताई लेकिन चार के बहुमत से फैसला हुआ. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "अदालत ने बहुमत से यह पाया है कि 14वें संशोधन की धारा 3 के तहत ट्रंप राष्ट्रपति कार्यालय के लिए अयोग्य हैं."

दरअसल, कॉलराडो की सर्वोच्च अदालत ने एक जिला अदालत का फैसला पलटा है जिसमें कहा गया था कि ट्रंप ने 6 जनवरी 2021को कैपिटोल हिल पर हुए हमले के लिए उकसाया था लेकिन उन्हें राष्ट्रपति चुनाव से बाहर नहीं किया जा सकता क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि कानूनी प्रावधान राष्ट्रपति चुनाव पर लागू होते हैं या नहीं.

कॉलराडो कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए ट्रंप योग्य नहीं हैं. हालांकि इस फैसले पर 4 जनवरी तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक के लिए रोक लगा दी है. अधिकारियों का कहना है कि 5 जनवरी तक इस मामले में फैसला होना जरूरी है क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्राइमरी बैलट छापने की वह अंतिम तारीख है.

अब सुप्रीम कोर्ट पर निगाह

कॉलराडो सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कहा, "हम ऐसे निष्कर्षों पर आसानी से नहीं पहुंचते हैं. हम इन सवालों की अहमियत और व्यापकता को समझते हैं. लेकिन साथ ही हमें कानून के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी अहसास है. जनता की प्रतिक्रिया से प्रभावित हुए बिना और किसी डर या पक्षपात के बिना हम इस फैसले पर पहुंचे हैं."

वैसे, ट्रंप के वकीलों ने पहले से ही इस तरह के निर्णय की तैयारी कर रखी थी और कहा था कि अगर पूर्व राष्ट्रपति को अयोग्य करार दिया जाता है तो उसके खिलाफ संघीय अदालत में अपील की जाएगी. अमेरिका में किसी भी संवैधानिक मामले पर आखिरी फैसला करने के अधिकार संघीय सुप्रीम कोर्ट को होता है.

ट्रंप की कानूनी प्रवक्ता ऐलिना हैबा ने मंगलवार को जारी एक बयान में अदालत के फैसले की आलोचना की. उन्होंने कहा, "कॉलराडो सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला देश के लोकतंत्र पर हमला है. यह सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिकेगा और हमें भरोसा है कि वहां यह फैसला पलट जाएगा."

कॉलराडो की अदालत का फैसला आने के बाद मंगलवार को ट्रंप ने एक रैली को संबोधित किया लेकिन आयोवा राज्य के वॉटरलू में हुई इस रैली में उन्होंने फैसले का कोई जिक्र नहीं किया. हालांकि उनके प्रचार दल की तरफ से धन जुटाने के लिए भेजी गई ईमेल में फैसले की आलोचना की गई और इसे "निरंकुश फैसला" बताया गया.

क्या है धारा 3

रिपब्लिकन पार्टी की राष्ट्रीय समिति की अध्यक्ष रोना मैक्डेनियल ने इस फैसले को चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश बताते हुए कहा कि पार्टी के वकीलों का दल ट्रंप को इस फैसले के खिलाफ कानूनी लड़ाई में मदद को तैयार है.

2020 में जब राष्ट्रपति चुनाव हुए थे तो कॉलराडो में ट्रंप की 13 फीसदी मतों से हार हुई थी. हालांकि इसके बावजूद वह राष्ट्रपति चुनाव जीत गए थे और अगले साल होने वाले चुनाव में जीत के लिए उन्हें कॉलराडो में जीत की जरूरत नहीं होगी.

फिर भी, उनके लिए यह फैसला परेशान करने वाला हो सकता है क्योंकि अन्य राज्य और चुनाव अधिकारी इस फैसले का अनुसरण कर सकते हैं और ट्रंप को ऐसे राज्यों में भी अयोग्य करार दिया जा सकता है जो उनकी जीत के लिए जरूरी हैं. पूरे देश की कई अदालतों में उनके खिलाफ संविधान की इसी धारा के तहत मुकदमे दर्ज हैं.

14वां संशोधन अमेरिका में हुए गृह युद्ध के बाद इसलिए लागू किया गया था ताकि कनफेडरेट्स कहे जाने वाले विद्रोहियों को सत्ता में लौटने से रोका जा सके. इस नियम के तहत ऐसे किसी भी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है जो संविधान की शपथ लेने के बाद बगावत का किसी तरह से समर्थन करता है या उसमें शामिल होता है.

अन्य राज्यों पर असर

नोट्रे डाम यूनिवर्सिटी में कानून पढ़ाने वाले प्रोफेसर डेरेक म्युलर ने इस नियम के तहत दायर हुए मुकदमों का विस्तार से अध्ययन किया है. मंगलवार के फैसले पर म्युलर कहते हैं, "चूंकि अब घाव से पट्टी हटा दी गई है तो मुझे लगता है कि इस फैसले से अन्य राज्यों की अदालतें या सचिव प्रोत्साहित होंगे.”

धारा 3 के तहत पहले भी कुछ मामले दायर हुए हैं लेकिन यह पहली बार है कि मुकदमा दर्ज करने वालों को कामयाबी मिली है.

इससे पहले मिनेसोटा में दायर ऐसे ही एक मामले में पिछले महीने वहां के सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य की पार्टी को किसी को भी प्राइमरी बैलट में रखने का अधिकार है. धारा 3 को खारिज करते हुए उस अदालत ने हालांकि याचिकाकर्ताओं को आम चुनाव में दोबारा इस तरह की याचिका ला सकने का विकल्प दिया था.

वीके/एए (एपी, रॉयटर्स)

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